________________ (64) सेठिया जैन ग्रन्थमाला की आवश्यकता न प्रतीत होती हो, परन्तु उन्हें यह विवार लेना चाहिये कि समाज अकेले उन्हींसे बना हुआ नहीं है / उसमें श्रीमानों की अपेक्षा गरीब ही अधिक होते हैं / जो नियम अधिक से अधिक आदमियों को अधिक से अधिक लाभ पहुँचावे वही अच्छा नियम है-चाहे वह नया हो या पुराना। न कोई नियम पुराना होने से ही अच्छा होता है, न नया होने से बुरा / उसकी अच्छाई या बुराई लोगों की नीतिपूर्ण सुविधा पर अवलम्बित है। इसी कसौटी पर नियमों की परख होनी चाहिये / यदि कोई इस प्रकार विचार नहीं कर सकता तो उसे समाज-नेता होने का कोई अधिकार नहीं है। समाज का नेता वही हो सकता है जो व्यक्तित्व को भूल कर अपने आपको गरीबों की बराबरी का समाज का एक जुद्र अंग समझे। जिस समय नियमों का निर्धारण हो उस समय यदि निष्पक्ष, निस्वार्थ और नीतिमान् गरीबों को ही निर्धारक बनाया जाय तो समाज को अत्यधिक लाभ हो सकताहै। एक बात और है / जो प्राचीनता को ही प्रमाण मानकर नये नियमों की अवहेलना करते हैं वे यदि विचार करें तो उन्हें भी पुरानी प्रथाओं में काट छांट करने की आवश्यकता मालूम होगी। इसका कारण यह है कि जो नियम जिस समय स्थापित किया जाता है वह कुछ दिनों तक तो अपने मूल सिद्धान्त और रूप पर स्थिर रहता है किन्तु शीघ्र ही उसमें विकार आ जाता है और लोग मनमाना अर्थ लगाकर उसका दुरुपयोग करते हैं / ऐसे सैकड़ों उदाहरण दिये जा सकते हैं जिनका मूल स्वरूप और उद्देश्य कुछ और था पर आजकल सर्वथा विकृत हो गया है / कभी कभी तो इतना विकार आ जाता है कि आदर्श की रक्षा होनी