________________ (74) सेठिया जैन ग्रन्थमाला आशा थी कि सैण्डो के कुश्ती लड़ने और उसे पछाड़ने से मेरी नामवरी होगी पर उसके लड़ने से इन्कार कर देने पर मेरे मन की बात मन में ही रह गयी।" __जो कुछ हो; सैण्डो को देखकर राममूर्ति के मन में भी घूम घूम कर अपने बल की करामात दिखाने की इच्छा उत्पन्न हुई / पहले वह किसी सरकस में भरती होकर अपनी करामात दिखाना चाहते थे किन्तु स्वर्गीय लोकमान्य तिलक के दढावा और मदद देने पर उन्होंने अपना एक अलग सरकस कायम किया। सैण्डो ने वोझ उठाने में अधिक नामवरी पायी थी-वह पचास मन का बोझ उठा लेता था / राममूर्ति उससे दुगुना तिगुना बोझ उठालेते / अपने खेल में लगभग सौ मन का हाथी कलेजे पर रख लेते थे, यह बाद नो संसार प्रसिद्ध है। हिन्दुस्थान में अपने बल का डंका पीटकर राममूर्ति विदेशों में भी गये / इंग्लैण्ड फ्रांस आदि यूरोपीय देशों में भी उनकी धाक बंध गयी / यही नहीं, उनकी वीरता देखकर कितने विदेशी जलने भी लगे / उन लोगों ने राममूर्ति को मार डालने की भी कोशिश की / मलाका द्वीप में इन्हें दो बार जहर दिया गया / पहली वार तो जहर का कोई लक्षण भी मालूम न हुआ ! उनकी बलवान आतड़ी उसे साफ पचा गयी, किन्तु दूसरी बार उन्हें इतना जहर दिया गया जिससे बलवान घोड़ा तक मर जा सकता था। जहर के लक्षण मालूम होते ही राममूर्ति लंगोट बांधकर पांच हजार दण्ड कर गये / पसीने के साथ वहुत कुछ जहर निकल गया तो भी बहुत दिनों तक वह खाट पर पड़े रहे / यों ही फ्रांस में भी कुछ दुष्टों ने जाल रचकर उन्हें मारने का यत्न किया। राममूर्ति छाती पर हाथी चढ़ाने के पहले / / राममछि दुष्टों ने जात वह खाट पर