________________ सेठिया जैन ग्रन्थमाला प्राचीन भारत में गोवृंद की अधिकता से घी दूध की नदियां बहती थीं जिनके कारण लोग पुष्ट और बलवान होते थे। आजकल तो घास का घी खाकर लोग गर्व करते हैं / गोपालन प्राचीन भारतीयों का प्रधान कर्तव्य था। कामदेव के एक दो गौएँ नहीं छः गोकुल थे / एक गोकुल में दस हजार गाएँ होती हैं अर्थात् कामदेव के पास साठ हजार गाएँ थीं / यदि हम लोग एक एक गाय भी पालें तो शीघ्र यह दुर्बलता और सारे रोग दूर हो जाय। कामदेव के जीवन की ये दो बातें ही उस समय के सुखी जीवन के प्रमाण उपस्थित करने के लिये पर्याप्त हैं। जिस युग में धर्मावतार भगवान् महावीर स्वयं लोगों को अपने पावन उपदेशामृत से पवित्र करते थे उस युग के श्रावकों की धार्मिकता का कहना ही क्या? कामदेव का जीवन भी बड़ा पवित्र था। एक समय की बात है कि भगवान चंपा नगरी में पधारे / दर्शनार्थ जनता की टोलियां उमड़ पड़ी / कामदेव ने जब यह सुसमाचार सुना तो उनके हर्ष की सीमा न रही। वे तुरंत भगवान् का पावन उपदेश सुनने के लिये रवाना हुए / भगवान् महावीर ने उपदेश किया-'हे प्राणियो! मनुष्य जन्म पाकर भी उसका महत्वन जानने वाले मोहीजीव धाम, धरा धन और रमणी के रंग में रंगकर उसे व्यर्थ नष्ट कर देते हैं / " उपदेश सुनकर कामदेव का कोमल हृदय पिघल गया। उसने श्रावकधर्म स्वीकार करने का निश्चय करके भगवान से प्रार्थना की"नाथ! मैं मुनिधर्म का भार उठाने में असमर्थ हूँ। मुझे श्रावक व्रत देने की कृपा कीजिये। भगवान् ने दया करके उसे श्रावक धर्म से व्रती किया / कामदेव ऐसे प्रसन्न हुए कि पत्नी से जाकर कहा-" प्रिये ! भगवान महावीर जैसे उपदेशक के होते हुए भी