________________ सेठिया जैन ग्रन्थमाला देख, उसे दया आगई / मनुष्य का रूप धारण करके, उसने नदी में डुबकी लगाई और एक सोने की कुल्हाड़ी निकाली। निकालकर उसकी ईमानदारी की जाच करने के लिये बोला क्या यही तेरी कुल्हाड़ी है. ? लकड़हारेने उत्तर दिया-"नहीं, यह मेरी कुल्हाड़ी नहीं है"। यह सुन देव ने दूसरी डुबकी लगाई / अब की बार एक चांदी की कुल्हाड़ी निकाल कर पूछा-"क्या यही तेरी कुल्हाड़ी है? लकड़हारे ने फिर जबाव दिया "नहीं यह भी मेरी नहीं है। देव ने लीसरी डुबकी लगाई और लकड़हारे की असली लोहे की कुल्हाड़ी निकाल कर पूछा-"क्या यह तेरी है ?लकड़हारा बोला "जी हां,यहो मेरी कुल्हाड़ी है।" देवता ने उसकी ईमानदारी से खुश होकर नीनों कुल्हाड़िया उसे दे दी। ... प्यारे बालको ! अगर वह लकड़हारा झूठ बोल कर सोना या चांदी की कुल्हाड़ी को अपनी पताता तो उसे एक भी न मिलती। और उल्टा सजा का भागी होता। सच है-सचाई का फल मीठा होता है। कहा भी है झूठ कबहुँ नहिं बोलिए, झूठ पाप का मूल / .: झूठे की कोउ जगत में, करे प्रतीति न भूल॥१॥