________________ [30] सेठियाजैनग्रंथमाला वैसा ही कह देना सच बोलना कहलाता है / लेकिन जिस सत्य बचन से किसी दूसरे पर भारी विपत्ति श्रा पड़े ऐसे सत्य को महापुरुष असत्य कहते हैं। हा. उस में यदि जरा भी स्वार्थ या मोह का अंश हो तो यह सत्य नहीं असत्य ही है / सदा सच बोलने वाले बालक को माता पिता गुरु भाईबन्द सब प्यार करते हैं। जो एक भी वार असत्य बोलते हैं उनकी माख च. ली जाती है। फिर उनकी सची बात का भी कोई विश्वास नहीं करता।बहुतसे लड़के हँसी मज़ाक में झूठ बोलना एक साधारण बात समझते हैं। पर यह उनकी निरी भूल है / उस समय झुठ बोलने से भी न जा. ने क्या अनर्थ हो जाय? कई लोग किसी स्वास मौके पर झूठ बोलने में अपनी बड़ाई समझते हैं। परन्तु समझदार लोग- चाहे उसके प्रेमी ही क्यों न हों- उन्हें बुरा ही समझते हैं। झूठ कब तक छिपाया जा सकता है? कभी न कभी अवश्य ही भेद खुल जायगा, और तय उन्हें लजित होना पड़ेगा। झूठ बोलनेकी अपेक्षा चुप रहना अच्छा है / इस के सिवाय दो अर्थ वाला या संशय उत्पन्न करने वाला सत्य वचन बोलना भी बुरा है / श्रीहेमचन्द्राचार्य ने कहा है- "झूठ बोलने