________________ [72] सठियाजैनग्रन्थमाला बिगरी बात बनै नहीं, लाख करो किन कोय / रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय // 2 // रहिमन उजलो प्रकृत को, नहीं नीच का संग। करिया वासन कर गहे, कालिख लागत अंग // 3 // रहिमन निज मन की विश, मन ही राखो गोय। सुनि अठिले हैं लोग सब, बाटि न सक है कोय॥४॥ रहिमन विपदा ह भली, जो थोरे दिन होय / हित अनहित या जगत में,जानि परत सब कोय // 5 // रहिमन वे नर मर चुके, जो कहुँ मागन जाहिं / उनते पहले वे मुए, जिन मुख निकसत 'नाहिं' // 6 // कह रहीम कैसे निभ, बे! केर को संग। वे डोलत रस आपने, उनके फाटत अंग // 7 // रहिमन ओछे नरन सों, पैर भलो ना प्रीति / काटे चाटे स्वान के, दोउ भांति विपरीति // 8 // रहिमन तीन प्रकार ते, हित अनहित पहिचानि / पर वस परे परोस वस, परे मामल जानि // 9 // खीरा सिर से काटिये, मलिये नमक लगाय / रहिमन करुए मुखन को, चहियत यही सजाय // 10 // अमी पियावत मान विन, रहिमन मोहि न सुहाय / प्रेम सहित मरियो भलो,जो बिष देय बुलाय॥११॥