________________ हिन्दी-बाल-शिक्षा शेष न हो / यदि संसार के कार्य ईश्वर को ही करने हों तो घह कृतकृत्य नहीं रहेगा। शंकर-गुरुजी ! आप को बात से मैं बड़े सन्देह में पड़ गया। आपने जो कहा वह तो ठीक है पर मैंने सुना हैहो कर दीनदयाल वह, उपजावत संसार / तातें प्रभु-पद सेवना, है जीवन कौसार // क्या यह मिथ्या है ? गुरुजी-प्रिय शिष्य ! तुम्हीं इस बात का विचार करो / देखो, यदि परमात्मा दयालु होकर संसार का निर्माण करता, तो वह दीन दुखी और दुराचारी जीवों को क्यों पैदा करता? जिसे दुखी देख कर हमारा हृदय भर भाता है, उसे बनाते समय परमात्मा को दया नहीं पाती तो उसे हम दयालु कैसे कह सकते हैं ? पहले तो उसने जीवों को दुराचार करने की बुद्धि दी और पीछे दण्ड देना प्रारंभ किया / क्या कोई न्यायी राजाऐसा करेगा कि पहले अपनी प्रजा को जान बूझ कर चोरी और दुराचार में पड़ने दे और फिर उसे दण्ड दे कि तुमने क्यों चोरी की ? बच्चो! रागद्वेष और इच्छा से रहित परमात्मा को इन झंझटों से कोई मतलब नहीं / सुरेश-गुरुजी ! जव परमात्मा संसार को नहीं बनाता तो कौन बनाता है ? आखिर कोई न कोई बनाता तो होगा ही, किसी के बनाये विना तो बन नहीं सकता। . . गुरु०-हां सुरेश ! तुम्हारा कहना टीक है / पर इस प्रश्न का उत्तर ढूँढ़ने के पहले यह सोचो कि यह संसार है क्या