________________ हिन्दी-बाल-शिक्षा _ (49) के अनेक परीक्षालय स्थापित हो गये हैं। इन परीक्षालयों से देश को क्या लाभ हुआ है, यह कहना तो कठिन है पर जो हानियाँ हुई हैं वे स्पष्ट हैं / पुरातन भारत में जैसे पारङ्गत विद्वान हो गये हैं वैसे आजकल कहां हैं ? इस अभाव के कारणों में एक आजकल के विद्यार्थियों का परीक्षा में उत्तीर्ण होकर उपाधि ले लेने का मोह भी है / आजकल प्रतिशत दो ही चार विद्यार्थी ऐसे मिलेंगे जो ज्ञानार्जन के लिये शिक्षा ग्रहण करते हैं। शेष सबका उद्देश्य उपाधि-धारगा और नौकरियों के पीछे पागल होना है। उपाधि--धारणा के इस दृप्ति अहंकार ने ज्ञान प्राप्ति का वास्तविक लक्ष्य नष्ट कर दिया है / जिससे शिक्षा में एक प्रकार की कृत्रिमता आ गयी है। _ अपनी योग्यता और ज्ञानार्जन की मात्रा का अनुमान करने के लिये ही परीक्षा होनी चाहिये क्योंकि यही उसका तात्पर्य है / इस दृष्टि से भी परीक्षा की प्रणाली में पर्याप्त सुधार करने की आवश्यकता है। आजकल प्रायः ऐसे उदाहरण मिलते हैं कि जिन विद्यार्थियों की योग्यता अधिक होती है वे अनुत्तीर्ण हो जाते हैं और कमजोर लड़के पास हो जाते हैं / कभी कभी तो ऐसे शिक्षार्थी भी पास हो जाते हैं जिनके अनुत्तीर्ण होने की पूरी संभावना रहती है और भलीभांति पाठ्य पुस्तकों का अध्यक यन भी नहीं किये होते। विद्यार्थियों को लिखित उत्तर देने का शिक्षकों को खूब अभ्यास कराना चाहिये / बहुतेरे विद्यार्थियों के अनुत्तीर्ण होने का कारण यह भी है कि उन्हें उत्तर तो याद होते हैं पर उन्हें कैसे लिखना चाहिये यह नहीं जानते / कितने ही परीक्षालय में प्रवेश करते ही घबड़ा जाते हैं / परीक्षार्थियों को अपने अध्य: