________________ (50) सेठिया जैन ग्रन्थमाला यन काल में निर्भीक होकर लिखने का खूब अभ्यास करना चाहिये। __ प्रश्नपत्र मिलने पर उसे शांत और गंभीर होकर ध्यान से पढ़ना चाहिये। पहले यह देखो कि परीक्षक क्या पूछता है? जितना वह पूछे उतनेका ही उत्तर सावधानी के साथ लिखो / कितने ही लड़के अपनी योग्यता दिखाने के लिये उससे अधिक लिख जाते हैं जो परीक्षक पूछता है / यह दोष है और इसमें भी नम्बर कट जाते हैं / पहले सम्पूर्ण प्रश्नपत्र पढ़ जाओ और देखो कि किन प्रश्नों के उत्तर तुम्हें खूब अच्छी तरह याद हैं / ऐसे प्रश्नों पर निशान कर दो। फिर जो प्रश्न तुम्हें सबसे सरल जंचे उसका उत्तर सबसे पहले लिखी / बहुत जल्दी न करो अन्यथा लिखने में गलतियां रह जायगी। जब वह प्रश्न लिख चुको तो फिर देखो कि बचे हुए प्रश्नों में तुम्हें कौन सबसे अधिक याद है। जो खूब याद हो उसे ही लिखो। जो प्रश्न सबसे कठिन मालूम हो उन्हें सबके अन्त में करो / जरूरत से ज्यादा न लिखो क्योंकि जितना समय मिला है उतने में ही तुम्हें प्रश्नों के उत्सर लिखने हैं / परीक्षालय में नये आदमियों अथवा निरीतकों को देखकर घबड़ाओ नहीं: तुम चुपचाप अपना कार्य करो। प्रश्नों का उत्तर देते समय अपने सामने देखो; इधर उधर देखना बहुत बुरा है बराबर ऐसा करने से निरीक्षक को नकलची होने का सन्देह हो जाता है। ऐसी अवस्था में कितने ही लड़के निकाल दिये जाते हैं और परीक्षा देने के अधिकार से वंचित हो जाते हैं। परीक्षा देने जाते समय अपने साथ कागज, कलम, पेंसिल इत्यादि प्रयोजनीय वस्तुओं को छोड़कर और कुछ न ले जाओ / लिखा हुआ कागज कदापि अपने पास