________________ (42) सेठिया जैन ग्रन्थमाला न पुरुषार्थ विना वह स्वर्ग है , न पुरुषार्थ विना अपवर्ग है / न पुरुषार्थ बिना क्रियता कहीं, न पुरुषार्थ बिना प्रियता कहीं। सफलता वर-तुल्य वरो उठो पुरुष हो पुरुषार्थ करो उठो // 3 // न जिसमें कुछ पौरुष हो यहां , सफलता वह पासकता कहां? अपुरुषार्थ भयङ्कर पाप है , न उसमें यश है न प्रताप है। न कृमि-कीट समान डरो, उठो, पुरुष हो पुरुषार्थ करो उठो // 4 // मनुज-जीवन में जय के लिये, प्रथम ही हद पौरुष चाहिये। विजय तो पुरुषार्थ बिना कही। कठिन है चिर-जीवन भी यहां, भय नहीं, भव-सिंधु तरो, उटो, . पुरुष हो पुरुषार्थ करो उठो // 5 // यदि अनिष्ट अड़ें, अड़ते रहें, विपुज विघ्न पड़ें, पड़ते रहें। हृदय में पुरुषार्थ रहे भरा, जलधि क्या, नभ क्या, फिर क्या धरा ? दरहो, ध्रुव धैर्य धरो उठो, - पुरुष ही पुरुषार्थ करो उठो // 6 // यदि अभीष्ट तुम्हें निज सत्व है ,