________________ सेठिया जैन प्रन्यमाला घटना न प्रसिद्ध हो / प्रथम तीर्थङ्कर श्री ऋषभदेव ने एक वर्ष और अंतिम श्री महावीर ने छह महीने पर्यन्त समाधियुक्त उपपास किया था / अब भी अनेक जैनाचार्य इक्यासी 2 दिन पर्यन्त उपवास करते देखे जाते हैं। अभी अधिक दिन नहीं हुए कि देश के पारस्परिक कलह से दुःखित होकर पूज्य महात्मा गांधी ने इक्कीस दिन तक उपवास किया था। उस समय सारा देश इस कृशकाय महात्मा की ओर आश्चर्यमय दृष्टि से देख रहा था। उपवास की उपयोगिता के सम्बन्ध में उन्होंने कहा था"हम अपने शुद्ध चरित्र से अपने मन की शुद्धता का विश्वास दूसरों को न करा सकें तो समझना चाहिये कि हमारे चरित्र में ही अपूर्णता है और अपने चरित्र को पूर्णतः शुद्ध करने के लिये उपवास सफल साधन है " इन बातों से हम सहज ही समझ सकते हैं कि उपवास से मन और आत्मा को शुद्धि का कितना गहरा सम्बन्ध है। * उपवास मुख्यतया दो कारणों से किया जाता है / (1) शरीरशुद्धि के लिये और (2) मनःशुद्धि के लिये। आयुर्वेद के मतानुसार हमारे शरीर में वात, पित्त और कफ तीनों विद्यमान हैं / इनमें से किसी एक के बढ़ जाने अथवा घट जाने से नाना प्रकार की बीमारियां उत्पन्न हो जाती हैं / 'शरीरं व्याधिमन्दिरम्' अर्थात् शरीर रोग का घर है / इस घर को जितना ही शुद्ध और स्वच्छ रक्खेंगे रोग उत्पन्न होने की उतनी ही कम संभावना रहेगी / वात, पित्त और कफ में परस्पर विषमता प्राजाने पर उन्हें सम अवस्था में लाने के कई उपाय हैं / जैसे औषध-चिकित्सा, जलचिकित्सा, विद्युत् चिकित्सा, वायुचिकित्सा , उपवास चिकित्सा, आदि /