________________ सेठिया जैन ग्रन्थमाला पाठ 8 वाँ। अमृत वाणी बदला लेने से मनुष्य अपने शत्रु के तुल्य हो जाता है, परन्तु बदला न लेकर उसके अपराध को क्षमा करने से वह उसकी अपेक्षा श्रेष्ठ गिना जाता है क्योंकि क्षना करना बड़ों का काम है। बदला लेने के समय मनुष्य मृत्यु को कुछ नहीं समझता; वासना में उन्मत होने से मृत्यु का तिरस्कार करता है, अकीर्ति से बचने लिये मृत्यु को मन से चाहता है, दुःख में मृत्यु को घर बैठे बुलाता है, भय के मारे भीरु मनुन्य अपने आप को मृत्यु के हवाले कर देता है तो फिर समाज और धर्म के लिये आत्मो. त्सर्ग करना क्या बड़ी बात है ? / (3) - कीर्ति सम्पादन करना बुरा नहीं है परन्तु केवल कीर्ति के लिये कोई कार्य करना बुरा है / कर्तव्यनिष्ठा ही कीर्ति उपार्जन करने का सर्वोतम साधन है / जो लोग कर्त्तव्यपालन किये विना ही कीर्ति पाने की कामना करते हैं वे कागज़ के फूलों में सुगंध खोजने वालों के समान हैं। जो अपना उत्कर्ष नहीं कर सकते, वे ही दूसरों का उत्कर्ष देख कर डाह करते हैं / जो स्वयं उन्नति कर सकते हैं वे दूसरों की उन्नति देखकर ईर्ष्या नहीं करते वरन् प्रसन्न होते हैं।