________________ सेठिया जैन प्रन्यमाला दिनों उसका भोग कर सके हो, उसके लिये देने वाले को (धर्म) को धन्यवाद देना-धन्य समझना / तुम्हारे लिये जो वास्तव में अमंगलजनक है, उसी को अपने मन से दूर कर दो / दुःख, भय, लोभ, ईर्ष्या, मात्सर्य, विलासिता, भोगाभिलाष, इन सब को मन से दूर करो-किन्तु जब तक तुम ईश्वर के प्रति दृष्टि नहीं रक्खोगे-उनकी आशानुसार न चलोगे-उनके चरणों में अपने जीवन का उत्सर्ग करके उनके आदेश का पालन नहीं करोगे तब तक यह सब कुप्रवृत्तियां तुम्हारे मन से किसी प्रकार भी दूर नहीं होंगी / इस पथ को छोड़ यदि तुम दूसरे पथ पर चलोगे तो तुम से अधिक प्रबल शक्ति पाकर तुम्हें पराजित कर देगी; चिरकाल तक तुम बाहर ही बाहर सुख-सौभाग्य की खोज करते रहोगे, किन्तु कभी उसे पाओगे नहीं / कारण, तुम उसी जगह उसकी खोज करते हो, जहां उसके मिलने की कोई संभावना नहीं और उस जगह खोज करने में विलम्ब करते हो जहां वह वास्तव म है / कठिन शब्दों के अर्थ आकांक्षा अभिलाषा,वि.सी वस्तु को पाने की इच्छा / बाधा दु:ख, विपत्ति, कठिनाई / उत्पीड़न दुःख देना, चोट पहुंचाना / मात्रार्थ- हा, डाह / उत्सर्गबलिदान, त्याग,समर्पण / परिचालित- संचालित. प्रवृत्त /