________________ हिन्दी-बाल-शिक्षा (35) ~~~marrrrrrrrrrrrrrrrrrror होती है / लंगड़ापन पांव की ही बाधा है, प्रात्मा की नहीं। जो कुछ भी क्यों न हो, तुम सब अवस्थाओं में ही कह सकते हो कि यह बाधा मेरी नहीं, किसी दूसरे की बाधा है। ३-तब कौन तुम्हारा उत्पीड़न करता है-कौन तुम्हें कष्ट देता है? तुम्हारी अज्ञानता ही तुम्हारा उत्पीड़न करती है-तुम्हें कष्ट देती है / जब हम लोग बन्धु-बांधव से, सुख-सम्पद् से अलग होते हैं तब अपनी अज्ञानता ही हम लोगों का उत्पीड़न करती है / दाई (धात्रो) जब थोड़ी देर के लिये बच्चे के पास से चली जाती है, तब बच्चा रोने लगता है किन्तु फिर ज्यों ही उसे थोड़ी मिठाई दी जाती है त्यों ही वह उसका दुःख भूल जाता है। तुम भी क्या उसी बच्चे की तरह होना चाहते हो? हम जिस में थोड़ी सी मिठाई पर भूल न जाय हम जिस में यथार्थ ज्ञान द्वारा विशुद्ध भाव द्वारा परिचालित हों, इसका ध्यान रखना चाहिये। वह यथार्ध ज्ञान क्या है ? मनुष्य को यह समझना चाहिये। क्या बंधु-बांधव, क्या पद मर्यादा, यह सब कुछ भी अपना नहीं है-सभी दूसरे की चोजें हैं। अपना शरीर भी अपना नहीं समझना / धर्म के नियमको सदा समस कर अपनी प्रांखों के सामने रखना / वह धर्म का नियम क्या है? वह यही है कि जो कुछ वास्तव में अपना है, उसे ही चिपटकर धरना दूसरे की चीज पर दावा न करना / जो तुम्हें दिया गया है, उसीका व्यवहार करना; जो तुम्हें नहीं दिया गया है, उसका लोभ न करना / जो तुमसे वापस ले लिया जाय, उसे तुम इच्छापूर्वक सहज में ही छोड़ देना और जितने