________________ हिन्दी-बाल-शिक्षा (33) करते रहोगे तो कर्म की अनुकूल अवस्था आते ही कार्य सिद्ध हो जायगा / यदि तुम भाग्य के भगमे निठल्ले ही बैठे रहोगे और हाथ पैर न हिलाओगे तो सफलता नहीं मिल सकती / संभव है किसी समय कर्म की अवस्था कार्य-सिद्धि के अनुकूल हा पर तुम्हारे निष्क्रिय बैठ रहने से वह अनुकूल अरस्था भी यों ही निकल जाय / तो तुम हाथ मलते रह जाओगे। तुम यह नहीं जान सकने कि किस समय कर्म की अनुकूल अवस्था होगी? इसलिये कार्य सिद्ध होने तक बराबर उद्योग करते जाना चाहिए / एक बार की असफलता से हताश न होकर बराबर प्रयत्न करने वाले की सफलता चेरी हो जाती है / समझे ? धीर०--हां, मां ! समझ गया कि सफलता प्रयत्न से मिलती है किन्तु उसके लिये कर्म की अनुकूलता होनी चाहिये / अतएव अपने कार्य की सिद्धि के लिये सदैव यत्न करते रहना चाहिये / हां, एक बात पूछने को रह गयी / तुमने कहा था कि कम आठ प्रकार के होते हैं। वे कौन कौन हैं? माता--बेटा! कर्म के निम्नलिखित पाठ भेद हैं (1) ज्ञानावरग:---जो आत्मा के ज्ञान को ढके / (2) दर्शनावरण--जिस के कारण प्रात्मा का दर्शन गुण छिप जाय / (3) वेदनीय-जो सांसारिक सुख दुःख का भोग करावे / (4) मोहनीय-जो आत्मा के चारित्र और सम्यक्त्व को चिंगाड़े।