________________ हिन्दी-बाल-शिक्षा (27) पाठ 9 वाँ। हिलती हुई दीवार पंजाब में गुरुदासपुर नामक एक स्थान है। यहां वैरागियों का गुरुद्वारा है ।वहां महन्त दीपचन्दजी के पुत्र महन्त नारायण - दासजी बड़े करामाती हुए हैं। उनकी करामातों का विकास बचपन से ही हो चला था / दस बर्ष की अवस्था में तो आपने ऐसी बड़ो करामात दिखायी कि जिसका चमत्कार आजतक भी सबके देखने में आता है। इस महात्मा के पिता महन्त दीपचन्दजी एक मजबूत महल बनवा रहे थे, जिस के कारीगरों ने अत्यन्त सावधानी और परिश्रम से एक सुदृढ़ दीवार उठायी थी और जिसका उनको बड़ा घमण्ड था / एक दिन नारायणदासजी खेलते खेलते उधर जा निकले तो कारीगरों ने कहा--- "बाबाजी, हमने ऐसी पक्की दीवार बनायी है कि यदि हाथी भी टकर मारे तो न हिले।" ये छोटे बाबाजी तो बड़े खिलाड़ी थे और खेलते खेलते कोई अद्भुत करामात दिखादेना इनके बायें हाथ का खेल था। कारीगरों की यह बात सुनकर वहां गये और उस पक्की दीवार पर अपना पांव रखकर हिलाया तो वह भी हिलने लगी / इसके पश्चात् भोलेपन के साथ कारीगरों की ओर मुँह करके कहा कि देखो यह तो हिलती है, कहीं हम गिर न पड़ें। कारीगर तथा और लोग इस चमत्कार को देखकर चकित रह गये। महंत दीपचंदजी ने कारीगरों से कहा कि इसको ऐसी ही रहने दो, इस पर छत