________________ हिन्दी-बाल-शिक्षा (29) भिखारी--बाबू ' काम क्या करू, कुछ जानता नहीं, अक्षर से भेंट नहीं / माता पिता कोई रहा नहीं, दीन बालक हूँ / चुटकी भर आटा मिल जाय / वीर--मैं तुझ स छोटा हूँ और चौथी कक्षा में पढ़ता हूँ। तू ने विलकुल नहीं पढ़ा। एक दिन गुरुजी कहते थे ___ बड़ा पशू साई अहै, विद्या नहिं जेहि पास / भिखारी-परम दीन जन सम सदा, रहे परायी पास // वीरसेवक ने विस्मित होकर पूछा-"अरे! तू कहता है मेरे लिये काला अक्षर भैंस बरावर है / फिर तुझे यह दोहा कैसे याद है?' भिखा-बाबू !,बचपन में बहुत यत्न किया, गुरुजी की सेवा की पर मेरे भाग्य में विद्या न लिखी थी, न आई न आई / गुरुजी ने भी अनुग्रह करके मुझे पढ़ाने में बहुत परिश्रम किया, पर मैं पढ़ न पाया / गुरुजी अब समझाते तो यही दोहा कहते / इसीसे मुझे यह याद रह गया / वीर--- तूने परिश्रम किया, तेरे गुरुने भी परिश्रम किया, फिर भी तू न पढ़ सका, यह कदापि नहीं हो सकता। आखिर मैं भी तो श्रादमी हूँ, मैं कैसे पढ़ता हूँ, मेरे सव साथी कैसे पढ़ते हैं ? हम लोग देवता तो नहीं हैं? बहाने करके अपना मतलब गांठना चाहता है / चल हट यहां से। वीरसेवक की माता ने उस भिखारी का तिरस्कार करते देखकर भिखारी को सान्त्वना और कुछ अन्न देकर विदा किया। फिर वह वीरसेवक को समझाने लगी- "बेटा! गृहागत अतिथि का कभी अनादर न करना चाहिए / एक दुखी जीच भाशा के