________________ (10) सेठिया जैन ग्रन्थमाला नन्द-अभी पाठशाला को दौड़ा आ रहा था, रास्ते में पत्थर - की ठोकर लग जाने से गिर पड़ा / इसी से घुटने छिल गये। सुरेश-गुरुजी ! यह हम लोगों से बहुत लड़ता झगड़ता है। जान पड़ता है, इसीलिये परमात्मा ने इसे दण्ड दिया है / शंकर--- इसने कल मुझे बहुत गालियां दी थी / परमात्मा घट-घट व्यापी है / वह जैसे को तैसा दण्ड देता है। वीरसेवक-गुरुजी ! मां कहती थी कि संसारी जीवों को जो दुःख सुख होता है, वह कर्म के निमित्त से होता है और सुरेश कहता है कि परमात्मा दण्ड देता है / अनुग्रह करके बताइये कि दण्ड कौन देता है / गुरु- मेरे प्यारे विद्यार्थियो ! तुम लोग यह जानते हो कि परमात्मा राग द्वेष इच्छा और शरीर से रहित है / तुम्हें यह भी ज्ञात है कि वह कृतकृत्य और स्वाधीन है। सुरेश-जी हां, यह बात तो आपने उस दिन बतायी थी। . गुरु०-अच्छा, तो जिसे राग द्वेष नहीं है, जिसे किसी प्रकार की इच्छा नहीं है, वह दण्ड देने की भी इच्छा नहीं करेगा, न संसार की रचना करने की ही इच्छा करेगा। और जब उसकी इच्छा ही न होगी तो क्या कोई उससे जबर्दस्ती रचना करा लेगा ? यदि ऐसा हुआ तो बेचारा ईश्वर, ईश्वर ही न रहेगा और वही जबर्दस्ती करने वाली शक्ति ईश्वर कहलायेगी। दूसरी बात यह है कि परमात्मा कृतकृत्य है / कृतकृत्य उसे कहते हैं जिसे कोई कार्य करना