________________ हिन्दी-बाल-शिक्षा (6) जिस विषय में जिस की गति नहीं है उस विषय में उसे हाथ न डालना चाहिए / यह एक सीधी दात है / पर सामयिक साहित्य में इस नियम की रक्षा नहीं होती। (7) अपनी विद्या या विद्वत्ता दिखाने की चेष्टा मत करो / यदि विद्या हं तो है तो वह लेख में आप ही प्रकट हो जाती है, चेष्टा नहीं करनी पड़ती। आज कल के लेखों में अगरेजी,संस्कृत आदि भाषाओं के उद्धरण एवं प्रमाण बहुत दिखायी पड़ते हैं। जो भाषा अपने को नहीं मालूम; उस भाषा के किली वाक्य या अंश को अन्य ग्रन्थों को सहायता से कभी न उद्धत करो। (8) सब अलंकारो में श्रेष्ठ अलंकार सरलता है। जो सरल शब्दों में सहज रीति से पाठकों को अपने मन के भाव समझा सकते हैं, वे ही श्रेय लेखक हैं क्योंकि लिखने का उद्देश्य ही पाठकों को समझाना है। . (9) जिस बात का प्रमाण न दे सको, उसे मत लिखो। प्रमाणों के प्रयोग की यद्यपि सब समय आवश्यकता नहीं होती तथापि प्रमाणों का ज्ञान रखना आवश्यक है। लिखते समय इन बातों का ध्यान रख कर लिखने से साहित्य की अच्छी सेवा की जा सकती है। कठिन शब्दों के अर्थ / निबन्ध लेख, सुन्दर सङ्गठित रूप में लिखी हुई रचना / सम्पादन- उत्पन्न / 'व्यक्त-- प्रगट / वक्तृत्व-- बोलना, भाषण / सार्वकालिक-- जो सब समय रह ‘सके वा काम दे सके / चिरस्थायी- बहुत काल तक टिका रहने वाला। प्रसूत--उत्पन्न / साहित्योद्यान-- साहित्य रूपी वाटिका। अर्थगौर-सौरभ