________________ मेठिया जैन ग्रन्थमाला किन्तु हमारे देश में अभी वह दिन नहीं आया / रुपये के लिये लिखने से लोकरञ्जन की प्रवृत्ति प्रबल हो उटती है / और हमारे देश के वर्तमान साधारण पाठकों की रुचि एवं शिक्षा पर ध्यान देकर लोकरञ्जन की ओर झुकने से रचना के विकृत और अनिष्टकर हो उठने की पूर्ण सम्भावना है। (3) यदि तुम अपने मन में यह समझो कि लिखकर देश या मनुष्य जाति की कुछ भलाई कर सकोगे अथवा किसी सौन्दर्य की सृष्टि कर सकोगे तो अवश्य लिखा / जो लोग अन्य उद्देश्य से लिखते हैं,वे न तो लेखक का दायित्व समझते हैं और न इस उच्च पदवी को ही पा सकते हैं। (4) जो असत्य और धर्म विरुद्ध है, जिस का उद्देश्य परायी निन्दा, पर-पीड़ा अथवा स्वार्थ-साधन है वह लेख कभी हितकर नहीं हो सकता / ऐसे लेख सर्वथा त्याज्य हैं / सत्य और धर्म ही साहित्य का लक्ष्य है और किसी उद्देश्य से कलम उठाना महापाप है। (5) जो लिखो उमे व से ही प्रकाशित न कर दो। कुछ दिनों तक उसे यों ही पड़ा रहने दो, इस के बाद उसका संशोधन करो अथवा किसी विद्वान् मित्र से कराओ / संशोधन करते समय तुम्हें देख पड़ेगा कि तुम्हारे लेख में अनेक दोष हैं। काव्य,नाटक, उपन्यास आदि लिखकर दो एक वर्ष रख छोड़ने के बाद संशोधन करने से वे पहले की अपेक्षा अधिक अच्छे हो जाते हैं किन्तु जो लोग सामयिक साहित्य की सेवा करते हैं उनके लिये यह नियम : नहीं है। इसी कारण लेखक के लिये सामयिक साहित्य अवनति का.कारण हुआ करता है। .. . .....