________________ सेठिया जैन ग्रन्थमाला जाता हूं, मेरा दुनिया का खेल खत्म हो गया। विद्वान् डैमोनक्स जब मरने लगा तब उसकी आयु सौ वर्ष से अधिक थी। उसके बंधुओं ने पूछा कि आप का अन्त समय है, बताइये कि आपको अन्त्येष्टि क्रिया कैसे करें? डैमोनक्स ने उत्तर दिया--"इस विषय की कुछ चिन्ता न करो, गन्ध मेरे मृत शरीर की अपने आप अन्त्येष्टि क्रिया कर देगी" | बंधुओं ने कहा - "क्या आप की यह इच्छा है कि श्राप के शरीर को कुत्ते और चील खा जावें ?" डैमोनक्स ने कहा-"क्यों नहीं? मैंने इस शरीर द्वारा अपने जीवन-काल में मानव जाति की सेवा की है। अपने मृत शरीर से पशु पक्षियों का कुछ उपकार कर सकूँ तो अच्छा ही है।" ऐसे उच्च विचारों के शुद्ध-हृदय और प्रसन्न चित्त वाले लोग बहुधा दीर्घ जीवन लाभ करते हैं / . जिन स्थानों का जल-वायु स्वास्थ्यप्रद न हो, वहां नहीं रहना चाहिये। समुद्र वासी जन बहुधा दीर्घजीवी देखे गये हैं। स्वास्थ्य, शरीर, स्वभाव, भोजन इन पर मनुष्यों की आयु बहुत निर्भर है। : प्लीनी नामक एक विद्वान् लिखता है कि साधारण भोजन सब से उत्तम है। बढ़िया और चिकनाभोजन बहुधा अनेक रोग उत्पन्न करने वाला होता है। गांव तथा छोटी बस्तियों में रहना जीवन को धीरता देने वाला है। इस विचार से बड़े शहरों में रहना बुरा है, ऐसे नगरों का जल वायु वैसा स्वच्छ नहीं हो सकता / अंग्रेज तथा यूरोपीय शिक्षित पुरुष इसीलिये बड़ेः 2 नगरों के बाहर अपने बंगले बनवाते है / अब पढ़े लिखे भारतीय भी ऐसा करने लगे हैं / सब से बड़ी बात यह है कि मनुष्य को अपने जीवन में प्रकृति के नियमों पर खूब ध्यानरखना चाहिये।