________________ (22) सेठियाजैनप्रन्थमाला विचारसार ने तुरंत ही कौर थाली में पटक दिया और संग्राम के लिये सेनासजाकर प्रस्थान किया। दिन भर खूब घमासान युद्ध हुआ, शीलसन्नाह युद्ध का अंत करने गया / शत्रु के योद्धाओं ने उसका सामना किया / परन्तु पुण्यात्मा जहां जाते हैं, वहीं उनकी महिमा होती है। शासनदेवी ने समस्त प्रतिपक्षियों को स्तंभित कर दिया / उसी समय प्राकाशवाणी हुई कि-"नमोस्तु शीलसन्नाहाय ब्रह्मच. यरक्ताय " अर्थात् ब्रह्मचर्य में आसक्त शीलसन्नाह को नमस्कार हो। ऐसा कहकर देवताओं ने फूलों की वर्षा की। शीलसन्नाह चकित हो, ज्यों ही विचार करने लगा, त्यों ही उसे अवधिज्ञान होगया / अब तक उसके सामने जो एक प्रकार का परदा था, वह दूर हो गया। उसके सामने दिव्य प्रकाश प्रकाशित होने लगा। बस, उसने उसी समय केशलोच किया और मुनिदीक्षा अंगीकार कर ली / अन्त में मुनिराज शीलसन्नाह ब्रह्मचर्य के प्रभाव से मुक्ति को प्राप्त हुए। प्यारे बालको! ब्रह्मचर्य की अमित महिमा है / इस लोक और परलोक दोनों को सुख पूर्ण बनाने के लिए ब्रह्मचर्य से श्रधिक अच्छा दूसरा उपाय नहीं है। ब्रह्मचर्य से शरीरबल और मनोबल की प्राप्ति होती है / जो महापुरुष मन से भी ब्रह्मचर्य पालते हैं, उन्हें आत्मबल प्राप्त होता है। ब्रह्मचारी के सामने तमाम ऋद्धि सिद्धियां और देवतालोग हाथ बांधे खड़े रहते हैं। शीलसन्नाह को देखो / कहां तो घनघोर संग्राम, जिसे देखने मात्र से ही हाथों के तोते उड़ने लगते हैं और कहां ऐ. से भयंकर प्रसंग में देवों का पुष्पवृष्टि करना / यह सब बह्मचर्य की महिमा है। सच है- ब्रह्मचर्य से सब सिद्धिया अनायास ही प्राप्त होजाती हैं /