________________ हिन्दी-बाल-शिक्षा (55) थोड़ा हो तो भी प्रतिष्ठा बनी रहती है / जो व्यापारी इन बातों पर ध्यान रखकर व्यापार करेंगे, उन्हें अवश्य सफलता प्राप्त होगी। पाठ 21 अपनी भूल स्वीकार करना. मनुष्य जब तक सर्वश नहीं बन जाता, तब तक वह भूल का पात्र है / कोई भी पुरुष, चाहे वह कैसा ही विद्याविशारद क्यों न हो, यह प्रतिज्ञा नहीं कर सकता कि मुभ से भूल नहीं हुई, नहीं होती, या नहीं होगी। हम जिस बात को अच्छी और बहुत अच्छी समझते हैं कदाचित् वह ठीक न हो, क्योंकि हमारी ज्ञानशक्ति और स्मरणशक्ति परिमित है, पूर्ण नहीं है / अत एव भूल होना सहज है / जब भूल हो जाय तो उसे मालूम होते ही स्वीकार कर लेना चाहिए / जो ऐसा करते हैं वे सभ्य समाज में उच्च प्रासन पाते हैं, और यह उचित भी तो है, क्योंकि उन्हें अपनी अल्पशक्ति का ज्ञान है और हठ करने की कुटेव ने उन्हें प्रात्मविस्मृत नहीं बना दिया है / इसलिये उनके "भूलस्वीकार' गुण का सन्मान करना योग्य ही है / जिनकी आत्मा पर यह गुण शासन करता है वही गुणी हो सकता है / इसके विरुद्ध जो अपने अभिमान के मारे मन में जानता हुआ भी भूल स्वीकार नहीं करता, सच पूछो तो वह प्रात्म-हनन करना है। उस पर लोगों की श्रद्धा नहीं रहती। उसे अपनी भूल