________________ (54) सेठियाजैनप्रन्थमाला है, वह पैसा वालों से भी नहीं होसकता / इसलिए अपनी साख बैठाकर उसका सदा निर्वाह करना चाहिए। व्यापार में गड़बड़ी न पड़े, इसलिये नामा तैयार और साफ रखना उचित है / हमने किसको, कब, कितनी रकम किस लिये दी, हम किससे, कितनी रकम, कब और किस लिये लाये हैं, इस की स्मृति के लिये व्यापारी को लिख रखना पड़ता है। इसी को नामा कहते हैं / जो नामा ठीक रखना नहीं जानता, उसे व्यापार करने का ही तमीज़ नहीं है / अतः अपनी प्रामाणिकता के लिये नामे को साफ रखना चाहिए। इन सब बातों के सिवाय ग्राहक पर अपनी सचाई की स्थाई छाप लगाने वाला व्यापारी ही अच्छा व्यापारी कहलाता है / तथा उद्योग, उत्साह, पक्का विचार, कार्यतत्परता, व्यापार का शान, प्राहक की परख, सभ्यता, और स्वावलम्बन भी व्यापारी में होने चाहिए / बहुत से लोग विना परिश्रम किये ही शीघ्र धनवान बनने की लालसा से सट्टा फाटका करते हैं / यद्यपि कोई कोई ऐसा करने से धन भी कमा लेता है, पर अधिकांश धनकुबेर भी बात की बात में कंगाल होते देखे गये हैं। वास्तव में परिश्रम से पैदा किया हुआ पैसा हो सुखदायी होता है / इसलिये अपना गौरव बनाये रखने के लिये सट्टे में न फँसना ही बुद्धिमत्ता है / इसी प्रकार जिस व्यापार में शीघ्रता से घटती बढ़ती होती हो ऐसे व्यापार में विना समझे बूझे जल्दी हाथ न डालना चाहिए तथा उसमें बहुत सावधानी रखनी चाहिये। जिस व्यापार में घटती बढ़ती थोड़ी होती है, यदि उसमें नका