________________ उपक्रमण हिदी-बान-शिक्षा का पांचवां भाग भी शिक्षकों और शिष्यों के सामने समुपस्थित है। इसमें चौथे भाग की अपेक्षा भाषा और भाव अधिक गंभीर रवखे गये हैं, जिससे भाषाज्ञान और विषयज्ञान अधिक गंभीर हो / श्रास्तिक सम्प्रदायों में शारीरिक मानसिक नैतिक और धार्मिक उन्नति से ही मनुष्य की उन्नति समझी जाती है / इनमें से यदि किसी की भी न्यूनता हो तो वह उन्नति लंगड़ी-अधूरी ही है / इसके सिवाय इन चारों विषयों में परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध भी है / शारीरिक उन्नति से मन स्वस्थ रहता है, मन की स्वस्थता नीति की जननी है और नीति-पथ का अनुसरण किये विना धर्म के प्रासाद तक पहुंचना संभव नहीं है। इसी कारण इसमें उल्लिखित सभी विषयों का समावेश किया गया है। विषयों का संग्रह करना और शिक्षकों के कर-कमलों तक पहुँचाना हमारा कर्तव्य है, किन्तु अधिक से अधिक सदुपयोग करना शिक्षक महोदयों का काम है। आशा है शिक्षक, पुस्तक के विषय को शिष्यों के अन्तर में ढूंसेंगे नहीं, वरन् पुस्तक की सहा यता से उनके अन्दर छिपी हुई शक्तियों की अभिव्यक्ति करेंगे। इस भाग के संशोधन में श्रीमान् उपाध्याय श्री प्रात्मारामजी महाराज, श्रीमान् पण्डितरत्न श्रीघासीलालजी महाराज से सहायता प्राप्त हुई है, अतः दोनों माननीय महानुभावों का उपकार