________________ सेठिया जैन प्रन्यमाला न धैर्य त्यागें, न कभी उदास हों, नविघ्न बाधालख के हताश हों / न प्रेम का भाव कभी विनष्ट हो, प्रभो! हमारी प्रतिभा न भ्रष्ट हो / कुपात्र को दान नहीं दिया करें, न दुष्ट का मान कभी किया करें / अधर्म को धर्म कभी न मान लें, कुकर्म की ओर कभी न ध्यान दें / बना रहे प्रेम सदा स्वदेश का, करें नहीं त्याग कभी स्ववेष का / करें किसी को न कदापि चाकरी, प्रभो!करे उन्नति नित्य नागरी / / ..... कठिन शब्दों के अर्थ। स्वजाति-- अपनी जाति / स्वकामनावृक्ष- अपनी इच्छा रूपी वृक्ष / ऐक्यएकता / दैम्यमस्त-: दीनता से जकड़ा हुआ। पगें, रहें-- अनुरक्त रहें / पालिसीचाल, नीति। प्रतिभा-- चामत्कारिक बुद्धि, ऐसी बुद्धि जिससे नई नई कल्पनाएँ उठे। कुपात्र-- अनधिकारी, अयोग्य, जैसे आजकल बहुतेरे संडमुसंडे आलसी होकर भीख माँगते फिरते हैं, या कोई भीख माँग मागकर शराब मासादिपीते-खाते हैं, ये सब दान के योग्य नहीं हैं / स्वदेश-- अपना देश (भारतवर्ष) नागरी-वह प्रसिद्ध लिपि जिसमें हिन्दी संस्कृत आदि भाषाएँ लिखी जाती हैं और जिसमें बह किताब पी है।