________________ सेठियाजैनप्रन्यमाला देखा जाय तो विचारों का भेद है ही नहीं। क्योंकि तुम्हारा विचार समाज के सुधार करने का है और दूसरों का भी विचार समाज के सुधार करने का है। तो विचारों में भेद कहां है ? कहीं नहीं / हां,विचारों की सफलता के उपायों में भेद है। पर एक काम के अनेक उपाय भी हो सकते हैं। संभव है दूसरों के सोचे हुए उपायों से भी कार्य की सिद्धि हो सके। फिर भी यदि तुम्हें अपने विचारों की सत्यता पर और दूसरों के विचारों की निस्सारता पर पक्का विश्वास हो तो सभ्यता से, अच्छे शब्दों में विरोध कर सकते हो / पर विरोध करते समय खूब खयाल रक्खो कि दूसरों के विचारों पर आक्रमण हो, विचार वाले पर न हो / कई लोग किसी के विचारों की समालोचना करते समय विचार वाले की आलोचना कर बैठते हैं / यह उनकी भयंकर भूल है। हमारा कर्तव्य विचारों की जाच करना है न कि विचार वालों की जांच करना / विचार वालों की जांच करना केवल विरोध की जड़ है। जब ऐसा होता है तब खींचातानी बढ़ती और घोर अशान्ति मच जाती है। फिर एक दूसरे की अच्छी बात को भी नहीं मानता। फूट पड़ जाती है / फूट तो सुधार का शत्रु . है। बस, सुधार के बदले विगाड़ होता है। सचमुच देखा जाय तो सुधार के नाम पर ऊलजलूल लेख लिखने वाले, दूसरों पर गाली गलौज की बौछार करने वाले लोग ही समाज के शत्रु हैं / प्यारे बालको ! तुम जब पढ़ लिखकर समाज या देशके नेता बनो और किसी दूसरे नेता से तुम्हारे विचार न मिले तो इस शिक्षा को मत भूल जाना / क्योंकि इस