________________ (72) सेठियाजैनग्रन्थमाला जो विदेशों से गुणों को सीख कर आते यहाँ, और फैलाते उन्हें निज देश बीच जहां तहा। सर्वविध वे गण्य हैं, वे धन्य हैं, वे मान्य हैं, __अन्य नर औदुम्बरी-फल-जन्तु सम सामान्य हैं // 6 // है उसीका कीर्तिकारक जन्म इस संसार में, दे दिया सर्वस्व जिसने और के उपकार में। धन्य हैं वर वृक्ष वे जो सौख्य बहु देते हमें, ध्यान देते हैं नहीं इतने पड़े हम मोह में // 7 // शान मुझ में अल्प है, यह ध्यान में मत लाइये, हारिए मन में न सद् व्यवहार करते जाइये। चन्द्र-रवि दोनों कुहू में देख पड़ते जब नहीं, उस समय में दीप अपना काम क्या करते नहीं // 8 // खेल ही में बाल जो दिन काटता वह है बुरा ; शोक! अपने हाथ वह है मारता उर में छुरा।। बालपन से लाभ पहुँचाना उचित है लोक को, क्या प्रकट करता नहीं बालेन्दु निज आलोक को // 9 // लाभ अपने देश का जिससे नहीं कुछ-भी हुआ, जन्म उसका व्यर्थ है जल के बिना जैसा कुआ। इस जगत में वन्य पशु से भी निरर्थक है वही, ___ क्योंकि पशु के चर्म से भी काम लेती है मही // 10 // मान मर्यादा रहित जीना वृथा ही जानिए, स्वार्थरत को यश नहीं मिलता, इसे सच मानिए। पेट भरने के लिए तो उद्यमी है श्वान भी, क्या अभी तक है मिला उसको कहीं सम्मान भी // 11 //