________________ हिन्दी-बाल-शिक्षा (71) पाठ 28 परोपकार दीनता को दूर कर उपकार में जो लीन है, पूज्य है वह, क्योंकि अच्छा कर्म ही कौलीन है। दिव्य कुल में जन्म ही से लाभ कुछ होता नहीं, क्या मनोहर फूल में लघु कीट है होता नहीं // 1 // जन्म भर उपकार करना, ज्ञानियों का धर्म है, कर्म से पीछे न हटना , मानियों का मर्म है। सूर्य जब तक है उदित तम का पता लगता नहीं, खर-समीरण सामने क्या मेघ टिक सकता कहीं? // 2 // अन्य के उपकार से ही मान पाते हैं सभी, व्यर्थ वेशाटोप से होता नहीं कुछ भी कभी, / वस्त्र भूषण जो कहीं खर का तुरग के तुल्य हो, तो इसीसे क्या उभय का एक ही सा मूल्य हो // 3 // जो पराये काम आता धन्य है जग में वही, द्रव्य ही को जोड़कर कोई सुयश पाता नहीं। पास जिसके रत्नराशि अनन्त और अशेष है, क्या कभी वह सुरधुनी के सम हुआ सलिलेश है ? // 4 // आभरण नरदेह का बस एक पर-उपकार है, . __ हार को भूषण कहे, उस बुद्धि को धिक्कार है। स्वर्ण की जंजीर बाँधे श्वान फिर भी श्वान है, धूलि-धूसर भी करी पाता सदा सम्मान है // 5 //