________________ हिन्दी-बाल-शिक्षा (57) कि तुमने उसे स्वीकार नहीं किया, तो उन दूसरों के तुम्हारे प्रति कैसे विचार पैदा होंगे? निस्सन्देह वे तुम्हें घृणा की दृष्टि से देखेंगे / इसी से ऐसे लोग सर्वत्र घृणास्पद होते देखे गये हैं। इसके विपरीत यदि तुम धन्यवाद के साथ दूसरे के द्वारा बताई हुई भूल को स्वीकार कर लो तो वह तुम्हारा बड़प्पन समझेगा / बालकोयदि तुम्हें दूसरों के सामने अनन्य श्रद्धाभाजन बनना है और सत्य को अपनालेने का अभ्यास डालना है तो पहले तो भूल होने ही न दो, यदि हो भी जाय,क्योंकि अधूरे ज्ञान का धर्म यही है,तो उसे स्वीकार कर लो। सदा स्मरण रक्खो कि "हमारा वही है जो सत्य है" / यह कभी मत सोचो कि "जो हमारा है, हमारे मुख से निकलगया है वही सत्य है। हां, एक बात अवश्य है / जैसे हम से भूल हो सकती है, वैसे दूसरों से भी / संभव है कभी हमारी भूल तो न हो, पर वह दूसरे को भूल मालूम पड़ती हो / ऐसी अवस्था में अपनी बात पर भरोसा रखते हुए भी दूसरे की बात को अनसुनी न करो / एक बार अपनी बात पर फिर विचार करा, और दूसरे को समझा दो कि यह मेरी भूल नहीं है। ऐसा करना उसी समय ठीक है, जब तुम्हें दृढ़ विश्वास हो / यदि ऐसा किया तो तुम सत्य के पक्षपाती, सत्यप्रिय, न्यायशील और सत्पुरुष बन सकोगे, क्योंकि अपना दोप स्वीकार करना सजनों का लक्षण है।