________________ सेठियाजैनप्रन्थमाला छिपाने के लिए कल्पना का जाल रचना पड़ता है, जिससे वह दोष से मुक्त होने के बदले उसे बढ़ाता है / वह दोष बढ़ते बढ़ते अन्त में राई से पर्वत हो जाता है / तुमने तीसरे भाग में पर्वत का उदाहरणे पढ़ा है। उसने केवल मान की रक्षा के लिये अपनी भूल स्वीकार न की / पर क्या वह छुपी रही ? उसके विद्यार्थियों को मालूम हुई सब को मालूम हुई और आजकल भी हमें मालूम होती है / इसके सिवा वह पापी पुरुषों का एक नमूना गिना गया / यदि उसने अपनी भूल उसी समय स्वीकार कर ली होती, तो इतना बखेड़ा ही खड़ा न होता / इस उदाहरण से हम यह सीख सकते हैं कि यदि कोई हमें अपनी भूल बतावे तो हम उस पर कोप न करें वाग्बाणों (कटोर वचनों)की बषी न करें, प्रत्युत उसे हितैषी सममें, उसके कृतज्ञ हो और प्रसनता प्रगट करें। बहुतेरे अहंकारी मूल स्वीकार करने में अपना अपमान समझते हैं / वे अपने को भूल से रहित समझते हैं, परन्तु वास्तव में देखा जाय तो सब से ज्यादा भुल्लड़ वे ही हैं / क्योंकि वे इतने अनजान हैं कि अपनी भूल समझने और स्वीकार करने में ही भूल करते हैं। ऐसे लोग अपने मान की रक्षा के लिए ही हट करते हैं पर उनका सब जगह तिरस्कार होता है / कल्पना करो, तुम से कोई भूल हुई / किसी हितैषी ने तुम्हें सूचना दी / अब तुम यदि उसे मंजूर नहीं करते तो वह तुम्हारी भूल को भूल नहीं समझेगा? जरूर दूसरों से तुम्हारी भूल की चर्चा करेगा और यह भी कहेगा