________________ सेठियाजैनप्रन्थमाला भ्रमण करने से व्यवहार और * परमार्थ सम्बन्धी अनुभव बढ़ता है / अनेक पवित्र स्थानों में भ्रमण करने से, वहां के शुद्ध वातावरण से विचारों में शुद्धता आती है। कभी किसी स्थान पर जाने से जातिस्मरण ज्ञान (पूर्वभव को जान लेने वाला ज्ञान) उत्पन्न होजाता है / इसके सिवाय चतुरता, विद्या, लक्ष्मी सहिष्णुता आदि का भी लाभ होता है / भ्रमण करने से मन मजबूत होता है और हृदय खिलता है; भिन्न 2 देशों के नियम बर्ताव, रहन-सहन रीति-रिवाज देखने से, उनके संसर्ग में आने से, अपने और दूसरों के आचार-विचार की तुलना करने का अवसर मिलता है / इस से हम भले को अपना सकते और बुरे को छोड़ सकते हैं / भिन्न 2 प्रकृतियों के मनुप्यों के सम्पर्क में आने से मनुष्यों के स्वभाव का परिज्ञान होता है / और जगह 2 के प्राकृतिक सौन्दर्य के निरीक्षण करने का अवसर मिलता है / विना भ्रमण के धर्म का भी प्रचार नहीं होसकता / बौद्ध साधुओं ने विदेशों में खूब भ्रमण किया था / इसी से उनके धर्म का समस्त एशियाखण्ड में प्रचार होगया था / अाजकल भी बौद्धधर्म के मानने वाले हरएक धर्म के मानने वालों से अधिक हैं / यह देशाटन की ही महिमा है। प्राचीन काल में आर्य लोगों ने बहुत भ्रमण किया था / यह बात अनेक कथाओं और इतिहास से मालूम होती है। जहां अपने पवित्र आचरण में धब्बा न लगे, वहां जाने में झिझकना नहीं चाहिए / वहां की विद्या, व्यापार का ढंग, शिक्षा की परिपाटी आदि अच्छी 2 बातें सीखने में संकोच का त्याग कर देना ही अच्छा है। देशाटन की जितनी आवश्यकता है, उतनी ही उसमें