________________ हिन्दी-बाल-शिक्षा (49) वीर हिमालय की नाई अडोल बैठे रहे। उनके विशाल चेहरे से विषाद की एक भी रेखा व्यक्त न हुई, मानों उन्हें खबर ही न पड़ी हो। ___ एक समय की बात है कि भगवान् विहार करते हुए पेढाणा' गांव के समीप किसी अभीष्ट वस्तु पर दृष्टि जमाकर समाधि में मग्न होगये ! उस समय इन्द्र ने उन के चारित्र की खूब प्रशंसा की। वह प्रशंसा सुनकर एक संगम नामक देव क्रोधित हुआ / उसने निश्चय किया कि महावीर को तपस्या से भ्रष्ट करके इन्द्र को नीचा दिखाऊंगा। इस कलुषित भावना से प्रेरित होकर वह भगवान् के पास आया। उन्हें तपस्या से च्युत करने के लिये उसने छह महीने तक ऐसे घोरातिघोर उपसर्ग उपस्थित किये कि जिन्हें पढ़ने मात्र से दिल कंपायमान होने लगता है। उसने सब से पहले धृति की नर्षा की। मामूली वर्षा नहीं, एसी भयानक कि भगवान का सारा शरीर उससे ढंक गया,यहां तक कि सांस लेने में भी बाधा होने लगी। जब भगवान् इससे न डिगे तो उन्हें डांस और मच्छरों मे इमवाया / पश्चात् सर्प बिच्छू नेवले आदि भयंकर विषले जानवरों को उत्पन्न कर उन से कट दिलाया, परन्तु दीर्घतपम्वी महावीर ने इन सब संकटों को कुछ भी न गिना / यही नहीं शत्रु को शत्रु भी नहीं समझा। परन्तु संगम इतने से सन्तुष्ट न हुआ, अब की बार तो उसने अति भयंकर कर दिया / अर्थात् उसने बहुत बजनदार लोहे का गोला बड़े जोर से प्रभु पर फंका / कहते हैं उससे प्रभु घुटनों तक धरती में धंस गये, परन्तु ध्यानसे न गिरे / प्रभु में धैर्य था, उन्हें देह से ममता न थी और अमर आत्मा का अनुभव करते थे , फिर वे कैसे डिग सकते थे। प्रभु की यह विजय