________________ सेठियाजैनप्रन्यमाला हमें भले ही आश्चर्य से चकित बना देवे पर इससे भगवान् की महावीरता प्रकट होती है। इस प्रकार भगवान् ज्यों 2 अपनी संयमशीलता का परिचय देते गये, त्यों 2 सङ्गम भी नये 2 उपायों से उन्हें दुःखित करने लगा। परन्तु भगवान् टस से मस न हुए / अंत में उसने प्रभु की प्रशंसा को, जो इन्द्र के द्वारा की गई थी, सिर झुकाया। पाठ 19 स्वास्थ्यरक्षा. व्यायाम. संसार में ऐसा कोई. पुरुष न मिलेगा, जो बलवान् न बनना चाहता हो / प्रत्येक प्राणी में बल की आवश्यकता भी है / शरीर में बल होने ही से संसार के सब कार्य सिद्ध होते हैं / दुर्षल मनुष्य विद्या धन प्रादि नहीं कमा सकता। बलवान् ही अपने शत्रुओं को दबा सकता है। बलवान् का सर्वत्र सत्कार होता है और बलहीन का सर्वत्र तिरस्कार | सबल सिंह से सारा वन थर्राता है किन्तु निर्बल खरगोश से कोई नहीं डरता / इसी भांति सबल मनुष्य से चोर डाकू आदि सब थर्राते हैं, और निर्बल पर सभी अपना 2 रौब गांठना चाहते हैं / उसकी कहीं दाल नहीं गलती, अतः यह बात निर्विवाद सिद्ध है कि हरएक को बल की बहुत प्रावश्यकता है।