________________ (40) सेठियाजैनग्रन्थमाला कर बेचते हैं, भाव करके कम नाप तोल कर पूरे का मूल्य लेते हैं, बात कहकर नट जाते हैं, लोग उनका विश्वास नहीं करते / और जिसका विश्वास उठा, उसका ब्यापार उठा। २शुभ-अध्यवसाय- अर्थात् विचारों को पवित्र रखना / कमी 2 व्यापार में ज्यादा लाभ होने के लिये पाप-मय विचारों का सहारा लिया जाता है। जैसे अनाज का व्यापारी यह सोचे कि इस वर्ष पानी न बरसे तो अच्छा इससे अनाज बहुत महँगा हो जायगा और तब मेरे अनाज़ के बहुत रुपये उठेंगे " / यद्यपि ऐसे विचारों से अनाज सस्ता या महँगा नहीं हो सकता, तथापि उसके विचारों का परिणाम उसे भोगना ही पड़ता है। इसलिये ऐसे विचारों को सिर्फ पाप का कारगा समझ कर पास न फटकने देना चाहिए। 3 अप्रमाद-प्रमाद और लक्ष्मी का विरोध सा है। जहां प्रमाद है, वहां लक्ष्मी नहीं रहती / एक कथा प्रसिद्ध है-कि एक वार लक्ष्मी और दारिद्रय में झगड़ा होगया। दोनों मिलकर इन्द्र से निपटारा कराने चले / इन्द्र ने दोनों के बयान लेकर यह न्याय किया कि जहां प्रमाद आदि दोष रहने हों, वहां द्रारिइय रहे और जहां ये दोष न हों, वहां लक्ष्मी रहे / तात्पर्य यह है कि आलसी आदमी धनोपार्जन नहीं कर सकता, और धनोपार्जन हो व्यापार का लक्ष्य है / 4 उत्तम पुरुषों से व्यापार- व्यवहार--रखना चाहिए / नद, धूर्त, वेश्या, कलाल, कसाई और राजद्रोहियों वगैरह से व्यवहार न रखना चाहिए। नीच आदमियों के साथ व्यापार करने से लोक में अपयश होता है, और उनकी साख ही क्या ? बहुत संभव है, वे मौके पर मुकर जायें तथा इसका फल व्यापारी को भोगना पड़े /