________________ हिन्दी-वाल-शिक्षा (37) हैं / औषधि भी ऐसी वैसी नहीं, इतनी तेज़ कि रोगी का जन्म भर पीछा न छोड़े ! बस अजीगा तो दूर रहा, प्रतीसार और संग्रहणी रोग हो जाने से जन्म भर दुखी होना पड़ता है / इसलिए रोग की परीक्षा या चिकित्सा कराते समय वैद्य की परीक्षा कर लेना भी अावश्यक है। पाठ 15 तिक्रमण. संसारी जो अपने कार्यों में कितने ही सावधान रहें तथापि उन्हें कुछ न कुछ दोप लग ही जाता है। गृहस्थता दोषों से सर्वथा रहित हो ही नहीं सकते। क्योंकि सांसारिक कार्य विना आरम्भ परिग्रह के नहीं होते और जहां आरम्भ परिग्रह है वहा पाप भी अवश्य लगता है / चलने फिरने में, भोजन में, सवारी रखने में. और जीवन-निर्वाह के किसी भी आवश्यक कार्य में सदा दोष ही दोष लगा करते हैं। तात्पर्य यह है कि साधारण गृहस्थ-जीवन मानसिक वाचनिक और कायिक दोषों का घर है। गृहस्थ-जीवन की उलझनों में उलझा हुआ गृहस्थ महाव्रतों का पालन नहीं कर सकता / इसलिये सर्वज्ञ भगवान महावीर ने गृहस्थियों की कमजोरी समझकर उन्हें एकदेशव्रत पालने का उपदेश दिया है। किन्तु कई कारणों से उन व्रतों में भी कभीर भूल हो जाती है / अतः उस भूल - संशोधन के लिए प्रतिक्रमण करना आवश्यक है। पीछे लौटने को अर्थात् प्रमावश शुभ योग से गिरकर, अशुभ योग को प्राप्त होने के बाद फिर शुभ योग में वापिस आजाने को प्रतिक्रमण कहते हैं। अश्वा अशुभ योग को छोड़कर उत्तरोत्तर शुभ योग में वर्तना भी प्रतिक्रमण कहलाता है / पहले तीर्थंकर