________________ सेठियाजमान्यमाला पाठ शीलसन्नाह. ..... प्राचीन काल में किसी जगह क्षितिप्रतिष्ठ नामक नगर था / उस नगर के राजा की पुत्री का नाम "रुपी" था / रूपी राजा की इकलौती बेटी थी। इसलिये वह राजा को प्राणों से प्यारी थी। अब वह ब्याह के योग्य हुई तो राजा ने बड़े ठाट घाट से उसे प्यार दिया। पर होनहार को कौन टाल सकता है / रुपा शीघ्र ही विधवा होगई। अब उसने विचार किया कि शोल को रक्षा करमे के लिये चिता में जलकर प्राण गँवा देना चाहिए। उसने अपमा निश्चय पिता के सामने प्रकट किया / पहले कह चुके हैं कि रुपा राजा को यही लाडली बेटी थी / उसने उसे चिता में जलने ,म दिया। राजा ने कहा-"बेटो! पतंगिया की तरह अग्नि में ज. नकर प्राणों से हाथ धो बैठना वृथा है / हां, शोल की रक्षा के लिये प्राणों की भी ममता न करना अत्युत्तम मार्ग है / प्राण जायें तो भले ही चले जाये पर शील न जाना चाहिए। प्राणरक्षा और शोलरक्षा में से दोनों की ही रक्षा न हो तो शोल की रक्षा करनी चाहिए / मतलब यह है कि प्राणों की रक्षा यद्यपि आवश्यक है अब तक दोनों की रक्षा होसके तब तक प्राणों को व्यर्थ खोना उ. चित नहीं है। जीवन को कायम रखकर काम आदि विकारों पर प्रात्मबल के द्वारा विजय प्राप्त करना महत्वास्पद और प्रशंसनीय है / अतः पुत्री!तू अपने इस विचार को छोड़ दे और जीवित रहकर शील को रमाकर और धर्म में मन लगा। राजा का उपदेश सुन रुपा ने अपना विचार बदल दिया। अब दिनों बाद राजा का देहान्त होगया / उसके कोई पुनम