________________ (1) सेठियाजैनप्रन्थमाला wari - यदि कोई शत्रु तुम्हारे घर अावे, तो उसका भी स्वागत करो। यदि कोई तुम से बड़ा है, तो "पाइये, पधारिये" कहकर, आसन से उठो और ऊँचे आसन पर बैठाओ। फिर तुम बैठा। पेसा करने से तुम जव उसके घर जाओगे तो वह भी तुम्हारा वैसा ही सत्कार करेगा, जैसा तुमने उसका किया था / किन्तु यह सोचकर सत्कार न करो / सदा यही विचार रक्खो, कि अतिथियों का सत्कार करना चाहिए, क्योंकि यह हमारा कर्तव्य है, सभ्यता है। यदि अपने आदर सत्कार के लालच से दूसरों का श्राव-आदर करोगे, तो वह स्वार्थ ठहरेगा। स्वार्थी को कहीं आदर सत्कार नहीं मिलता / मतलब यह है कि यदि अपना कर्तव्य समझकर अतिथियों का आदर करोगे तो पुण्य होगा तथा तुम्हें भी आदर सत्कार प्राप्त होगा। पाठ 5 दूसरे की गुप्त बात प्रगट न करना. बालको! तुम बिनौला तो जानते ही होगे और यह भी जानते होगे कि वह बहुधा गाय भैसों के बांट के काम आता है। इसके सिवा उसमें एक ऐसा भी गुण है, जो अधिकतर मनुष्यों में नहीं पाया जाता। क्या तुम जानते हो कि वह गुण दूसरों के गुप्त अंगों को प्राच्छादन करना है। बेचारा छोटा सा बिनौला अपने तन का अर्थात् कपास का त्याग करके उससे हमारे अंगों को ढंक देता है। परन्तु बहु. तेरे मनुष्यों में एक दुर्गुण होता है कि वे दूसरों की गुप्त बात छिपाने के बदले जब तक उसे प्रगट नहीं करदेते तब तक चैन नहीं पाते / सदाचार और सभ्यता दोनों दृष्टियों से किसी