________________ हिन्दी-बाल-शिक्षा ई० सन् १५८५की बात है। एक बार पुर्तगाल देश के लिसवन नगर से एक जहाज़ गोयाआरहा था। उस जहाज में लगभग बारह सो मनुष्य थे। रास्ते में मल्लाहों की लापरवाही से यह एक चट्टान से टकरा गया।अतः जहाज़ की पेंदी में छेद हो जाने से उसमें पानी भर आया। यह दशा देख यात्रियों को मानो काट मार गया; उन्होंने जिन्दगी की आशा त्याग दी / कप्तान जहाज का बचना असंभव जान एक डोंगी निकाल और थोडासा खाने पीने का सामान साथ में लेकर रवाना हुआ। सब ने चाहा कि हम डोंगी पर चढ़ कर अपने प्राण बचावे, यन्तु डॉगी पर चढ़े हुए लोगों ने नंगी तलवारों से उनका सामना किया और किसी को न पाने दिया। क्योंकि यदि वह ज्यादा योझ से भारी होजाती तो अब जाने का भय था। इस प्रकार कप्तान उन्नीस भादमियों को डोंगी में बैठाकर चला। जब विपत्ति प्राती है तब अकेली नहीं आती / इसी नियम के अनुसार यहाँ भी प्रापत्ति पर आपत्ति आने लगी। कप्तान बीमार होगया और शीघ्र ही मर गया। उसके मरते ही तू तू मैं में " होने लगी। प्रत्येक अपने को सष का सरदार मानने लगा। यह दुर्दशा देख कुछ समझदारों ले एक मुढे श्रादमा को कप्तान खुन / कुछ दिन यीते ! किनारे को कहीं पताल वा यौर खाने पोने का सामान समाप्त हो याया / वाम् ने अहा-भाजन अधिक से अधिक तीन दिन चल सकता है / इतनी सामग्री से हम सब का निर्वाह होमा कठिन है / इसलिए सब के नाम की विढ़िया डाली जाय और प्रत्येक चौथो विट्ठी में जिसका नाम निकले उसे सयुनु मे केफ दिया जाय / इप ज्ञान को सष ने स्वीकार किया / सब के लायकी चिट्ठियां डाली गई, परन्तु शमान एक पारो यौर एक बलई के झाट की चिडिया नहीं