________________ प्रस्तावना / हिन्दीबान-शिक्षा सीरीज़ के तीन भाग पहले प्रकाशित हो चुके हैं, चौथा भागआपके सामने है। इसमें नैतिक, व्यावहारिक, शारीरिक और ऐतिहासिक विषयों की शिक्षा दीगई है। परन्तु नैतिक विषयों पर खास ध्यान रखा गया है / इस का एक कारण तो यह है कि हमारा गार्हस्थ्य जीवन अत्यन्त विकृतसा हो रहा है / जब तक उसका सुधार न किया जायगा, तब तक सामुदायिक उन्नति होना असंभव है और बालकों के सरत कोमल हृदय-क्षेत्र में नीति का बीज बोना ही गृहस्थजीवन के सुधार का एक मात्र उपाय है। क्योंकि बालक हीभावी सामाजिक जीवन के स्तम्भ हैं। दूसरा कारण यह है कि शिक्षा का उद्देश्य जैसे ऐहलौकिक सुधार है वैसे पारलौकिक सुधार भी / और वह तब ही हो सकता है, जब बालकों को पहले से ही नीति के नियमों से जानकारी हो और साथ ही साथ उसके प्रति अनुराग भी हो। पुस्तके, बालकों के हृदय में नीति के प्रति अनुराग पैदा करने में कितनी सफल होतीहैं ? यह एक गम्भीर प्रश्न है / हम इस सम्बन्ध में यही कहना आवश्यक समझते हैं कि पुस्तकें किसीभी विषय की ओर धाकृष्ट करने का साधन हैं। विशेष जिम्मेदारी तो अध्याएकों पर है / विद्यार्थियों की जीवन-नौका के वे ही कर्णधार हैं,अतः अध्यापकों का कर्तव्य है जिस पाट को वे पढ़ावें, उसका तत्त्व विद्यार्थियों की नस नस में व्याप्त करदें। ऐसा हुआ तो बालक आदर्शचरित्र, व्यवहारविज्ञ और नीतिनिपुण होंगे।