________________ हिन्दी-बाल-शिक्षा काटते छह दिन व्यतीत होगये, परन्तु चोर हाथ न पाया / अाखिर सातवीं रात्रि में बड़ी सावधानी से अभयकुमार ने चोर पकड़ पाया / उसने दबाव डालकर अपराध स्वीकार भी करा लिया / बाद में अभय उसे राजा के पास लेगया। राजा ने आदि से अन्त तक सब हाल सुन शूली का दण्ड दिया / अभयकुमार ने कहा-"महाराज! इसे शूली देने से पहले, दोनों विद्याएं सीख लेनी चाहिए / क्योंकि नीति में कहा है कि उत्तम विद्या लीजिये, यदपि नीच पै होय / परौ अपावन ठौर में, कंचन तजै न कोय // 1 // अभयकुमार की बात श्रेणिक को अँच गई। वह सिंहासन पर बैठा 2 चाण्डाल को नीचे बैठाकर विद्या सीखने लगा। चाण्डाल और श्रेणिक दोनों ने ही जी तोड़ श्रम किया, पर न तो वह समझा सका न श्रेणिक समझ सका। तब राजा ने कड़क कर कहा-“ऐ चाण्डाल! मुझे विद्या सिखाने में भी तू कपट करता है"? राजा को इस प्रकार चाण्डाल का तिरस्कार करते देख अभयकुमार ने कहा-"महाराज! विनय के विना विद्या नहीं पाती। यदि आपको विद्या सीखना है तो इसे सिंहासन पर बैठा. इये और पाप नीचे बैठिये, तब ही विद्या प्रायगी। जैसे पानी ऊपर से नीचे को बहता है, वैसे विद्या भी उसे ही आती है जो गुरु को ऊंचा और अपने को नीचा समझता है। इसलिये श्राप विनीत बनेंगे तो विद्या सीख सकेंगे” / मंत्री की बात सुनकर श्रेणिक ने अपने विद्यागुरु को श्रासन पर बिठलाया और पाप नीचे बैठा। ऐसा करते ही दोनों विद्याएं राजा की समझ में श्रागई / इस के बाद अभयकुमार ने विद्यागुरु होने से उसे विना दण्ड मुक्त करा दिया।