________________ हिन्दी-बाल-शिक्षा भाव-मय है / पुत्र पर माता पिता का सब से अधिक उपकार हैइतना अधिक कि पुत्र उसने कभी उरण नहीं होसकता / जिन्होंने हमें जन्म दिया है. उनके उपकार का बदला चुकाने का विचार ही कैसे किया जा सकता है। इसीलिए समझदार लोग माता पिता को देवता तुल्य समझकर उनकी सेवा करते हैंउनकी आज्ञा मानते हैं। चाहे कितना ही कष्ट क्यों न उठाना पड़े परन्तु वे माता-पिता की भक्ति अवश्य करते हैं / इस भक्ति में प्रायः चार बातों का समावेश होता है। (1) मन्मान (2) प्रेम 3) सेवा और आज्ञापालन। (1) सन्मान--- मन में माता-पिता के लिये सन्मान होना चाहिए अर्थात उनके बारे में कभी कोई अनुचित विचार न करना और उनके दापों को सन में स्थान न देना चाहिए / सदा ध्यान रखना चाहिए कि बड़े हर समय और हर हालत में हम से बड़े ही हैं। माता पिता के साथ बातचीत करते समय एक भी शब्द मूर्खता का कारन का या असम्मान भरान निकलने पावे। उनके सामने जो कुछ कहा जाय वह डिटाई से न कहा जाय किन्तु सभ्यता और विनय से।मातापिता जब पास ही खड़े हों तो बैठना उठना आदि क्रिया भी विनय के साथ करनी चाहिए जसेजब वे हमारे सामने खड़े हो, नोहम बैठे न रह वठे रहने से उनके प्रति आदर के भाव नहीं जाहिर होने / (2) प्रेम-दय में प्रेम न हो, तो सत्कार सूखा और व्यर्थ है। माता-पिता, पुत्रों के लिये अथक परिश्रम करते हैं किन्तु पुत्र यदि प्रेम से उनकी सेवा करें तो उन्हें यह परिश्रम नहीं लालता है। सबसली विजलि में पड़े होड दस का कोई उपाय न हो, कामासान देखकर उनकी आत्मा को बड़ी शान्ति और सुख मिलता है।