________________ हिन्दी-बाल-शिक्षा चौथा भाग. पहला पाठ. मेरी भावना. जिसने राग द्वेष कामादिक, जीते सब जग जान लिया; सब जीवों को मोक्षमार्ग का, निस्पृह हो उपदेश दिया / बुद्ध वीर जिन हरि हर ब्रह्मा, या उसको स्वाधीन कहो; भक्ति-भाव से प्रेरित हो यह, चित्त उमी में लीन रहो // विषयों की आशा नहिं जिनके, साम्यभाव धन रखते हैं। निज--पर के हित--साधन मंजी, निश दिन तत्पर रहते हैं। स्वार्थत्याग की कठिन तपस्या, विना खेद जो करते है। ऐसे शानी साधु जगत के, दुख-समूह को हरते है //