________________ सेठियाजैनप्रन्थमाला रहे सदा सत्संग उन्हीं का, ध्यान उन्हीं का नित्य रहे; उनही जैसी चर्या में यह, चित्त सदा अनुरक्त रहे। नहीं सताऊँ किसी जीव को, झूट कभी नहिं कहा करूं; पर धन पर त्रिय पर न लुभाऊँ, संतोषामृत पिया करूं // अहंकार का-भाव न रक्खू, नहीं किसी पर क्रोध करूं; देख दूसरों की बढ़ती को, कभी न ईर्षा भाव धरूं / रहे भावना ऐसी मेरी, सरल सत्य व्यवहार करूं; बने जहाँ तक इस जीवन में, औरों का उपकार करूं // मैत्री--भाव जगत में मेरा, सब जीवों से नित्य रहे; दीन दुखी जीवों पर मेरे, उर से करुणा-स्रोत बहे / दुर्जन क्रूर कुमार्गरतों पर, क्षोभ नहीं मुझको आवे; साम्यभाव रकाबू में उन पर, ऐसी परिणति हो जावे // गुणी ..जनों को देख हृदय में मेरे प्रेम उमड़ आवे; बने जहां तक. उनकी सेवा, करके यह मन सुख पावे / होऊँ मैहीं कृतघ्न कभी मैं, द्रोह न मेरे उर आवेः गुण-ग्रहण का भाव रहे नित, दृष्टि न दोषों पर जावे // . कोई बुरा कहो या अच्छा, लक्ष्मी आवे या जावे. लाखों वर्षों तक जीऊँ या, मृत्यु आज ही पाजावे / ' अथवा कोई कैसा ही भय, या लालच दने आवे; तो भी न्याय-मार्ग. से मेरा, कभी न पद डिगने पावे //