________________ [74] सेठियाजैनग्रन्थमाला दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करें न कोय / सुख में जो सुमिरन करें, दुख काहे को होय // 7 // एकहि साधे सब संध, सब साधे सब जाय। जो तू सींचे मूल को,फूलै फलै अघाय // 8 // का मुख ले बिनती करौं, लाज लगत है मोहिं / तुम देखत औगुन किये, कैसे भाऊ तोहिं // 6 // सार-लोहा पैंठ-बाजार अघाय-पूरी तरह ऐंठ-घमण्ड, अकड़ साहब-मालिक, परमेश्वर भाऊं-अच्छा लगूं या ध्याऊं पाठ उनतीसवाँ. गिरिधर की कुण्डलियाँ बीती ताहि विसारिदे, आगे की सुधि लेह / जो बन पावै सहज में, ताही में चित देह // साही में चित देह, यात जोई पनि आवै। दुर्जन हँसे न कोह, चित्त में खेद न पावै // कह गिरिधर कविराय, यहै करु मन परतीती॥ आगे को मुख समुझि, होइ बीती सो बीती॥