________________ हिन्दी-बाल-शिक्षा पाठ इकतीसवाँ. पुस्तक का सारांश. 1 किसी कार्य को प्रारम्भ करने से पहले परमेश्वर का स्मरण स्तवन नमन या ध्यान करना चाहिए। 2 कोई भी संसारी आत्मा सर्वथा निर्गुण नहीं है। किमी में कम गुण है किसी में ज्यादा / तुम उनके सद्गुणों को ग्रहण करो, दोषों को नहीं। 3 हृदयों की एकता ही सच्ची मित्रता है / जिसे एक बार परीक्षा करके मित्र बना लिया, उसके साथ द्विधा न करो। ___4 धूर्तता, नीचता है / धून व्यक्तियदि तिरस्कृत हो, तो क्या आश्चर्य है? 5 मैले कुचले टूटे फटे घरों में और खेतों में रह कर हल जोतने वाले बहुत से किसान भी बुद्धि-शन्य नहीं होते। उनका सत्कार करो / कदाचित् वे सभ्यता के ठेकेदार शिक्षितों से भी अधिक बुद्धिशाली हो सकते हैं। 6 बच्चों को गहना पहनाना उनकी जान को खतरे में डाल देना है। मनुष्यों की शोभा पौडलिक अलंकारों से नहीं, सद्गुणों से होती है।