________________ हिन्दी-बाल-शिक्षा [77 संसार का स्वरूप. काह घर पुत्र जायो काह के बियोग आयौ, काह राग रंग का रोना रोई करी है। जहां भान ऊगत उछाह गील गान देखे, सांझ समै ताही थान हाय हाय परी है // ऐसी जगरीत को न देखि भयभीत होय, हा हा नर मृढ़ तेरी मति कौने हरी है। मानुष जनम पाय सोक्त विहाय जाय, खोवत करोरन की एक एक घरी है // 3 // सोरठा. कर कर जिनगुण पाठ, जात अकारथ रे जिया / आठ पहर में माठ, घरी घनेरे मालकीं // 4 // कानी कौड़ी काज, कोरिन को लिख देत खत / ऐसे मरखराज, जगवासी जिय देखिये // 5 // सच्चे देव का स्वरूप. (छप्पय छंद) जो जगवस्त समस्त, हस्ततल जेम निहारे / जगजन को संसार-सिंधु के पार उतारै // आदि अंत अविरोधि, वचन सबको सुखदानी / गुन अनंत जिहँ माहि. रोग की नाहिं निशानी / /