________________ सेठियाजेनग्रन्थमाला पाठ तीसवाँ. कर्तव्य-शिक्षा. (मनहर छंद) देव गुरु सांचे भान सांचौ धर्म हिये आन, सांचौ ही बखान सुनि सांचे पंथ आव रे / जीवन की दया पाल झूठ तजि चोरी टाल,देख ना विरानी-बाल तिसना घटाव रे // अपनी बड़ाई परनिंदा मत करै भाई, यही चतुराई मद मांसकौं बचाव रे / साध खट कर्म साधः संगति में बैठ वीर, जो है धर्म-साधन को तेरे चित चाव रे // 1 // ___ यज्ञ में हिंसानिषेधकहै पशु दीन सुन यज्ञ के करैया मोहिं, होमत हुताशन में कौनसी बड़ाई है / स्वर्गसुख मैं न चहौं "देहु मुझे” यों न कहौं, घास खाय रहौं मेरे यही मन भाई है / जो तू यह जानत है वेदयों बखानत है, जग्य जलौ जीव पावै स्वर्ग सुखदाई है / डार क्यों न वीर यामें अपने कुटुंब ही कौं, मोहि जिन जार “जगदीस की दुहाई है" // 2 //