________________ [28] सेठियाजैनग्रथमाला दिया। सागर कुछ दिनों बाद घर आया,और व्याह का समाचार सुन बहुत दुःखी हुआ। वह चांडालके घर गया और उससे बोला-“हे पापी!तने यह क्या किया कि दामन्नक को जीता छोड़ दिया। अगर अब भी मेरा काम करेगा,तो मन चाहा द्रव्य दंगा। चाण्डाल बोला"मालिक! अब आप जैसा कहेंगे, वैसा ही करूगा / सेठ ने संकेत करके कहा “मैं आज सन्ध्या समय देवी के मंदिर में जिसे भेजूं उसे मार डालना। सेठ घर आकर बनावटी नाराज़गी दिखाकर बोला अरे मूर्यो! अब तक देवी की पूजा नहीं की ?" यह कह कर पूजनकी सामग्री तैयार करके दामादको पूजन के लिये भेज दिया। राह में दाभन्नक को उसका साला मिल गया। वह वहिनोईसे सब सामग्री लेकर स्वयं पूजन करने चला गया। चाण्डाल पहले ही से वहाँ मौजूद था। सागर के लड़के के पहुँचते ही उसने तलवार से उसका काम तमाम कर दिया / जब सागर को यह समाचार मालूम हुआ तो वह बहुत दुखी और अन्त में पुत्र-शोक से शोकिन होकर चल वसा / दामनक राजाज्ञा से घर का मालिक हुआ। सच है-अहिंसाधर्म का माहात्म्य अपरंपार है।