________________ [2] सेठियाजैनग्रन्थमाला किया। पर वह मय के लिये मनाई करता गया / अन्त में श्रीकृष्ण खिसियाकर बोले- तु ही बता, मैं कौन सा युद्ध करूँ? देव वाला-मैं चूतड़ भिड़ाकर युद्ध (चूतड़ युद्ध) करना चाहता है। देव की बात सुनकर श्रीकृष्ण बहुत खिन्न हुए और कानों पर हाथ धर कर बोले-जा,घोड़े को ले जा, मैं नीचयुद्ध नहीं करूंगा। यह बात सुन देव बहुत प्रसन्न हुआ, और मन में सोचने लगा-अहो! नारायण धन्य हैं, जिनकी इन्द्र महाराज भी प्रशंसा करते हैंयह सोच कर वह बोलाहे केशव ! मैं आपके अश्व को अपहरण नहीं करना चाहता, किन्तु मैं आपके गुणोंकी परीक्षा करना चाहता था।यह कह कर इन्द्र की प्रशंसा से लेकर अन्त तक का सब हाल सुना दिया / श्रीकृष्णने आत्मप्रशंसा सुनकर,सिर नीचा कर लिया। देव बोला-हे महा. पुरुष! लोक में प्रसिद्धि है, कि देवता का दर्शन वृथा नहीं जाता। इसलिए मुझ से कुछ वर मागिये / मैं वही वरदान दूंगा। श्रीकृष्ण बोले- द्वारका नगरी में इस समय बीमारी फैली है, उसे बन्द कर दो। देव ने एक भेरी देकर बतलाया कि इस भेरी को छह बह महीने बाद बज़वाना / इसका शब्द बारह योजन की